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पर्यावरणीय प्रदूषण पूरी दुनिया में स्वास्थ्य के लिए जोखिम का प्रमुख स्रोत बना हुआ है। हालांकि भारत जैसे विकासशील देशों में जोखिम सामान्यतः अधिक होते हैं, जहां गरीबी, बुनियादी ढांचे की कमी और कमजोर पर्यावरणीय कानून उच्च प्रदूषण के स्तर का कारण बनते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार परिवर्तनीय पर्यावरणीय कारकों के कारण पूरी दुनिया में २३% और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में २६% मौतें होती हैं। पर्यावरणीय रोगों के बोझ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा ख़राब परिवेश, घर के अंदर शुद्ध हवा की कमी, असुरक्षित पेयजल, अस्वच्छता एवं साफ-सफाई की कमी, विषैले रासायनिक पदार्थों के संपर्क में आना और जलवायु परिवर्तन के कारण है। भारत आधारित ग्लोबल बर्डेन ऑफ़ डिज़ीज 2013 रिपोर्ट के अनुसार यहाँ पांच सबसे बड़ी जानलेवा बिमारियों में उच्च रक्तचाप, घर में शुद्ध हवा की कमी, ध्रूमपान, खराब पोषण और बाहर की दूषित हवा मुख्य रूप से शामिल हैं।

भारत में दूषित पर्यावरण से उत्पन्न रोगों और जन स्वास्थ्य पर उसके प्रभाव को समझने तथा उसे संबोधित करने के लिए ” पर्यावरणीय स्वास्थ्य केंद्र” मई 2016 में टाटा सन्स और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज. के सहयोग से स्थापित किया गया था। यह केंद्र पी. एच. एफ. आई. के अंतर्गत टी. आई. एस. एस. के साझीदारी में कार्यान्वित है।

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